आँखों से छलकता पानी …… बंद कमरे की दीवार में ,
आज फिर से मारा “उसको”…….उसके घरवाले ने बीच बाज़ार में ।
सोच रही “वो” बैठी यूँ ……कि जीवन क्यूँ हारा …..ऐसे प्यार में ,
कब तक ऐसे चलता रहेगा …….उसके तन-मन और विचार में ।
डर लगता है अब तो …..पास जाने से भी ……बाहों के हार में ,
ये बाहें नहीं ……फाँसी का फंदा ……जो डाला उसके गले में ……इस संसार ने ।
रोज़ शाम को मार खाना ……..उसकी मर्दानगी के इंतज़ार में ,
क्यूँ “औरत” उसको है बनाया …….इन पापियों के संसार में ।
शादी के बंधन बाँध के जग ने ……..उसको छोड़ दिया “वहशी” के जाल में ,
अब वो है उसका “रखवाला” ………चाहे ज़हर दे अब प्यार में ।
“वो” उसके ज़ुल्म~ओ~सितम को सहती ……..”घरवाली” कहलाने के हक़दार में ,
पर अपनी जुबां को खोल न सकी …….ऐसा दर्द है उसकी पुकार में ।
Rape, Molestation होता ……तो “रपट” लिखाती जाकर थाने में ,
पर “परमेश्वर पति ” के दिए तोहफे को …….कैसे दिखा दे सारे ज़माने में ?
बात अमीरी या गरीबी की नहीं ………ये सदियों से चलता आया है ,
कि हर घर में ‘औरत” ने …….”घरेलू हिंसा” का अपने तन पर ठप्पा लगवाया है ।
अपनी “औरत” को मारने की इच्छा से …….हर पुरुष का पुरुषार्थ ललचाया है ,
इसीलिए तो अब “Domestic Violence” का Funda …….सरकारी लोगों को भी समझ में आया है ।
दो रोटी खाने की खातिर …….”औरत” दिनभर ससुराल में काम करे ,
फिर रात में “पति” की सेवा कर ……..अपना तन-मन गाल के भी ……न विश्राम करे ।
वो फिर भी “उसको” …..रोज़ है मारे , डंडे-लाठी के निशान …..तन पर गाड़े ,
सिगरेट -बीड़ी को तन पर रख कर …..ढेरों पहचान है उस पर वारे ।
बालों को “उसके” ऐसे खींचे ……..जैसे सपेरा साँप को पकडे ,
गालों पर “उसके” …..दांतों को फरमा …….रह जाए “उसका” हर अधूरा सपना ।
पर “वो” बैठी यूँ ही अपनी आँखें मींचे…….कर रही इश्वर से अब भी यही दुआ ,
कि या तो उसका जनम गलत है …….या है “उसके” पिछले जनम के ही ….कर्मो की कोई सज़ा ।
भाग के अब “वो” कैसे जायेगी ……अपने नन्हे बच्चों को ….इस जग में छोड़कर ,
बस ऐसे ही “वो” …..मर जायेगी एक दिन ……..’घरेलू हिंसा” के इस “कफ़न” को ओढ़कर ।।
A Message To All-
Domestic violence is the most dangerous call …..
As It is a decline of One’s sentiments fall…..
Which sometimes leads to the “Suicidal” End……
And left HER Partner”s Life in a Remorse Trend.
So Its better to be a Human instead of a Beast.
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