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Wednesday, March 4, 2015

Meri Pehchaan



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Hindi Poem – Meri Pehchaan

हर रोज़ मेरी “पहचान” ….कहीं लुप्त हो जाती है ,
मैं एक “लेख” लिखती हूँ ……
और अगले दिन न जाने ….
कितने नए लेखों की ,एक परत उस पर जम जाती है ।

मैं रोज़ इसी उधेड़ -बुन में ….
अपनी “पहचान” की अभिलाषा से …..
फिर से कदम बढ़ाती हूँ ……..
जिंदगी की रेस में ….बस भागती ही जाती हूँ ।

ये सोच कर कि ……आज गिर गए तो क्या हुआ ?
कल फिर से उठेगा …..धीरे-धीरे से धुआँ ,
आग लग गयी मेरे “आशियाने” में आज ……ये सोचकर ,
मैं उस आग को बुझाने की ……नयी तरकीब लगाती हूँ ।

जिस दिन मैंने …..अपनी “नयी सोच” को … न हवा दी ,
उस दिन मेरी सोच ने ही ……मुझको ऐसी सज़ा दी ,
मैं अपनी सोच पर पड़ी …..हर गर्त को हटाती हूँ ,
कि वो मेरी “पहचान” थी …..जिसे मैं गले लगाती हूँ ।

हम जीते हैं तो सिर्फ …. एक “पहचान ” के लिए ,
एक नाम के लिए …एक शान के लिए ,
रोज़ रेत में दबते हैं ……ऊँचाइयों को छूने की खातिर ,
फिर उसी रेत से खोजते हैं …….क़दमों के निशान ……बनके शातिर ।

इसलिए अपनी “पहचान ” को …..कभी खोने न देना ,
दब-दब के विचारों में भी ……..उसे सोने न देना ,
इतिहास गवाह है – हर उन “पहचान” बनाने वालो का ,
जिनके चेहरे से …. ज्यादा दीवाने हैं   ….”जिन्दा ख्याल “……उन मतवालों का ।

ऊँची सोच …..ऊँचे विचार ……जब भी हम मन में लाएँगे ,
लाख कोशिशों के बाद भी ……दबने यूँ न पाएँगे ,
“संघर्ष” करने की ललक ……जब तक तन में जिंदा रहेगी ,
तब तक आने वाली पीढ़ी से ……ये पुरानी पीढ़ी लड़ती रहेगी ।

मुझे भी रोज़ लड़-लड़ कर ….अपनी “एक पहचान” बनानी है ,
अपने लिखे “लेख” को … दबने से पहले ही …उस पर एक और नए “लेख” की परत चढ़ानी है ,
जब तक मेरी पहचान को ….पहचानने वाला न कोई आएगा ,
तब तक मेरे हर “लेख” से ……मेरे नाम का Copyright बनता जाएगा ।।

A Message To All-
Never Lose “Yourself”…….As Every New soul has its own Role.

1 comment:

  1. This one is good ! The subject is well conceived. Well contructed.

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