बीत गए ज़जबात,
पर जान न सका कोई …
इन “पटाखों” के सच की बात ।
लाखों पटाखे सुबह रोड पर जले पड़े थे ,
लोगों की “अमीरी” की शान के किस्से भरे पड़े थे ।
किसी ने कहा कि- बीती रात “दो लाख” में आग लगायी ,
और किसी ने कहा कि -ऐसी मद भरी दिवाली पहले कभी न बनायी ।
पर किसी ने ये न सोचा …..
कि कौन था इन पटाखों को बनाने के पीछे ?
कितनी रात जाग कर मेहनत की होगी उसने ……
ताकि वो अपने भूखे पेट को सींचे ।
हाँ ज़रा सोच कर देखो …..तो एक बार ,
दिल न दहल जाए तुम्हारा तो कहना– कि है मेरी “हार”।
वो नन्हे-नन्हे हाथ कैसे बारूद भरा करते होंगे ?
अपने “मालिक” के कितने ताने …..दिन-रात सुना करते होंगे |
कोई क्या जाने कि उनकी आँखों में भी “सपने” होंगे ……
जिनको पाने की खातिर, वो तन-मन से “मेहनत” करते होंगे ।
पटाखों की फैक्ट्री जाकर देखा तो, मैंने ये पाया ….
वो “Child Labour ” जो ban है ….वो फिर से अपने ज़ोरों पर था गरमाया ।
मालिक कहता कि -दिवाली में दिन हैं बचे केवल चार ,
और माल न बना तो सबको पड़ेगी मार ।
बेचारे नन्हे -नन्हे बच्चे सहमे से मेहनत करते ….
दिन-रात एक लगाकर अपनी नींदों को हराम करते ।
फिर क्यों नहीं हम भी कुछ …..उनके लिए करते?
ज्यादा न सही पर थोड़े से ….उनके सपनो में भी रंग भरते ।
पटाखे न खरीद उनको वहां की कैद से मुक्त कराते ……
और इस तरह पटाखा फैक्ट्री वाले को भी “चाइल्ड लेबर” रखने का सबक सिखाते ।
E -Diwali ,Green -Diwali ,Pollution -free Diwali,
ये सब तो “Newspaper” में सिर्फ नसीहतें होती हैं,
बस “पटाखों के सच” को स्वीकार करने की हिम्मत जिसमे होती है ….
उसकी दिवाली सोचो तो कितनी रंगीन हो सकती है ।
त्योहारों का महत्व ” पैसों “को आग लगाना नहीं होता ….
अपनी खुशियों के लिए किसी के दर्द से मुँह मोड़ना नहीं होता ,
गर हो सके तो सोचना अगली दिवाली पर दिल से एक बार …
कि क्या इन “पटाखों के सच” को जानकर भी ,हम ऐसे ही दिवाली मनायेंगे हर बार ?
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