बना कर मुझको “Vishwamitra “, खुद को “Menka” बनाने चला था वो,
लगा कर मुझमे एक अगन,उसको बुझाने चला था वो ।
आज था इम्तिहान फिर से दो आत्मायों के सम्मान का,
बहती हुई नदी और मन में दबे तूफ़ान का ।
वो समझता था कि नारी होती है कमज़ोर,
मर्दों के आगे बह जाती है बांध उनके संग डोर ।
वो समझाता रहा ,बताता रहा ,बहकाता रहा अपनी मीठी बातों से,
कि एक बार मेरी बन जायोगी, तो सुकून मिलेगा तुम्हें साथ बिताई रातों से।
मगर इस बार “Vishwamitra” एक नारी का रूप था ,
उसके बह जाने से सारे वेदों का मद चूर था ।
ये सच है कि नारी भी होती नहीं है कोई भगवन,
पर दृढ़ शक्ति होती है उसमे ऐसा कहते हैं ज्ञानी जन ।
रात का वो सुहाना समय मदहोश कर रहा था उन्हें,
वासनायों भरी बातों से कामुक भर रहे थे लम्हें ।
भंवरे की गुन -गुन हलचल मचा रही थी,
कानों में “Vishwamitra” के मधुर गीत गा रही थी ।
“Menka” का जादू सर पर सवार हो रहा था,
बस थोड़ी देर में पिघलने के सपने संजो रहा था ।
शमा भी जल-जल कर पिघलने लगी थी अब तो,
इस आग से खेलने की इजाज़त दे रही थी, मचलते हुए “पतंगों ” को सबको।
अरमानों की मदहोशी बेबाक कह रही थी,
“Vishwamitra” की तपस्या भंग होने को हर ज़ुल्म सह रही थी ।
पल-भर में तहस-नहस हो जाएगा सब कुछ,
आज फिर से “Vishwamitra” हार जाएगा सभी कुछ ।
पर इस बार “Vishwamitra” तैयार नहीं था अपनी ऐसी हार का,
नहीं तो इतिहास बन जाता गवाह फिर से लटकी हुई तलवार का ।
रणछोड बनना मंज़ूर उसे,पर सर कलम न हो……ऐसी नयी सोच का,
इसलिए भाग गया वो बीच मैदान से ,ताकि दोष न लगे “नारी -चरित्र ” पर …… किसी भी रोष का ।
इस तरह जीत गया Modern “Vishwamitra” और “Menka” गयी हार ,
क्या समझे ?…….ये सब है “Will -Power ” का चमत्कार ।
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