किस्सा सुनती हूँ …तुमको निराला,
कलयुग का “Laxman”……बन गया हत्यारा,
जिस दिवाली के इंतज़ार में,बच्चों ने पूरा साल निकाला,
उसी दिवाली को उसने अपना माथा ,कलंकित कर डाला ।
राम -लखन दो भाई पिता के,
प्रेम से रहते थे संग बहुरिया के ,
राम के लव-कुश बहुत निराले ,
पूरे घर में करते करतब निराले ।
लखन की रिया और दिया,
हंसती तो खिल जाता सबका जिया,
पर उसकी “उर्मी” के तेवर हरदम चढ़ऐ ,
कि मेरे घर में हुआ न “लल्ला” इतने समय ।
हर दिन वो तरकीब लगाती,
नए-नए ओझा पंडित बुलाती ,
बस एक लाल उसको हो जाए ,
जो इस घर का “वारिस” कहलाये ।
पर उस अभागन को ये कौन समझाए ?
कि लड़का-लड़की होने में “chromosome” काम आए,
इसमें न कोई डॉक्टर कर सके उपाए ,
और न ही कोई तंत्र -मंत्र काम आए।
बस वो तो त्रिया चरित्र का रूप धर बैठी,
मैयेके से एक “तांत्रिक” बुलवा बैठी,
जिसने ये उपाए बताया ……
कि “लड़का’ होगा उसके जो उसने “लव ” को काबू पाया ।
कहा उसने कि -आगे सुनो ए पावन देवी ,
“अमावस” की जब रात हो घनेरी ,
जग-मग,जग-मग दीप जलें जब ,
बस तंतर -मंतर फूंको तब “लव” पर।
सुनकर वो मन ही मन हरषाई,
बाजेगी अब उसके घर भी शहनाई,
छोटा “लल्ला”जब खेलेगा बगियन में ,
आधी प्रॉपर्टी की मालकिन बनेगी वो पल भर में ।
दौड़ कर लखन को बताने चली ,
कि इस बार “दीवाली ” को कर दो और नयी ,
अपने घर में दिया जलेगा,सोचो उसका प्रकाश बढेगा,
बस “लव” को थोडा घुमाकर लाना ,चौराहा पार करवाना ।
लखन बन गया मूर्ख -अज्ञानी ,
कहा- करेगा वही जो कहेगी वो ज्ञानी,
बस इंतज़ार था अब दोनों को उस घनेरी रात का,
जब “लव” करेगा विश्वास अपनों की हर बात का ।
दीप जले ….दीवाली आयी,
सबके चेहरों पर खुशियाँ लाई,
लव-कुश बैठे संग राम -सिया के ,
पूजन कर रहे थे गणेश -लछमिया के ।
इतने में लखन -उर्मी आये,
रिया-दिया को संग में लाये ,
पाँव पड़े अपने राम भैया के,
“दीपावली हो शुभ “-ऐसे कहें कुटिलता से ।
बच्चे मिलकर शोर मचाएं,
मिठाई खाकर फूलझड़ी चलाएं ,
लखन ने थामा हाथ “लव ” का,
बोला -चलो दिखाकर लायूँ तुम्हे, पटाखा एक बगियन का।
चाचा के मन का दबा तूफ़ान,
भाँप न पाया “लव” नादान,
साथ चल दिया उनका हाथ पकड़कर ,
बिन जाने क्या होगा आगे,उसके जीवन पर ।
थोड़ी दूर पर “चौराहा” आया,
उर्मी ने “पान-लड्डू” वहाँ सरकाया ,
बोले “लव” को – बेटा पार करो इससे झट-पट ,
उठा लायो वो “पटाखे” ,जो पड़े वहाँ पर ।
नन्हा “लव” कुछ जान न पाया ,
पटाखे पाने के लालच से मन हरषाया ,
कर दिए पार “जादू-टोने -तंतर “,
बचा न पाया उसे कोई भी मंतर ।
जैसे ही वो घर लौट कर आया,
“मितली” से उसका जी मचलाया ,
गिर कर हो गया बिस्तर पर ढेर ,
“लकवा” मार गया उसे ,ख़तम हुआ अब सारा खेल ।
रो-रो कर डॉक्टर को बुलवाया ,
पर रोग न उसका वो जान पाया ,
ऐसा तंतर फूंका था चाचा ने ,
कि जीवन भर अपंग बना दिया उसको ,निजी स्वार्थ ने ।
ऐसे “जादू-टोनों ” का कोई मेल नहीं है ,
ये सब बकवास बातें इनसे कोई खेल नहीं है ,
“दीपावली ” को पावन करना ही जीवन है ,
“सच्चाई ” और “धर्म ” के मार्ग पर चलना ही “उपवन” है।
इस तरह “चौराहों ” पर पूजन करना गर बंद कर देगा इंसान ,
तो “pollution -free ” और “city -clean ” का उसे भी मिलेगा सम्मान ,
“अंध- विश्वास” से गर होने लगे सबके संतान ,
तो हर कोई कहलायेगा खुद से ही भगवान् ।
कब तक यूँ ही अंध-विश्वासों को गले लगायोगे?
क्यूँ अपने सर पर किसी भोले-भाले के ……
जीवन को बर्बाद करने का ….
ऐसे ही पाप लगायोगे ।
गर बनना ही चाहते हो तुम रामायण के “राम”,
तो मत करो यूँ अपनी घटिया सोच को बदनाम ,
“रावण” भी बन जायोगे गर …..तो भी हो जाएगा तुम्हारा ‘नाम “,
बस मत बनना भूलकर भी कभी ….”कलयुग के लखन” जैसा इंसान ।।
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