कहने को तो “वो”….. हमसे खफा होते हैं ,
पर उस खफा में भी “वो” मेरे, होठों की हँसी होते हैं ।
रूठने की ऐसी अदा पर कुर्बान है …..मेरा ये दिल ,
रोज़ रूठा करें …..इस उम्मीद में ये मन डोले ।
खफा होना भी है ,एक प्यार की छोटी सी सीढ़ी ,
क्या हुआ जो “वो” खफा होकर ,मुझमे तरन्नुम घोलें ?
ये मेरे इश्क का इम्तिहान ….जो होता ग़ालिब ,
मैं कदमों में उनके गिर के, “खफा” को अलविदा कहती ।
उनकी हर खता को …..धडकनों में कैद करके ,
उन्हें अपनी मोहब्बत का ….. “मसीहा” कहती ।
उन्हें ये इल्म नहीं ……कि उनके रूठने के लिए ,
रोज़ मैं कितने …..अनगिनत बहाने ढूंढती हूँ ।
उनके उस मासूम से चेहरे पर ,एक नया भाव लाने ……
रोज़ खुद को …..मुजरिम करार करती हूँ ।
मेरा ये भोला सा दिल सोचा करता है रोज़ …..एक उपाय नया ,
कि “वो” ऐसे खफा हो ……..जो एक बहाना बने ।
उस बहाने में हम दोनों हो ……ये फ़साना बने ,
बात आगे बड़े …..और “वो” कहें यूँ जाने को ,
मैं जाने न दूँ …….बस खींच लूं लगाकर गले ,
मनाने की खातिर ही सही …..कह तो सकी उनसे दिल~ए ~ज़ज्बात ।
जिस ज़ज्बात को कहने में ….. एक ज़माना लगे ,
उसे “खफा” होने पर …… कहने का एक बहाना बने ।
क्यों है मुझमे इतनी शर्म~ओ~हया ,अब तक बाकी ?
कि दिल~ए ~मस्ती भी उनसे अब तक …..कहनी भी न आई ।
ये उनके अंदाज़~ए ~गुस्से ……..का है असर ,
या मेरी बेशर्म न बनने की सोच …… गहराई ।
ये फ़साना …….. उन सभी इश्क वालों के लिए ,
जो इश्क में …..अपनी “Ego ” का दम भरते हैं ।
खुद को हर पल …… “पुरुष प्रधान” की श्रेणी में रखकर ,
सिर्फ अपनी चाहत को ….. ऊँचाई पर सदा रखते हैं ।
कभी जो सोच कर देखा हो ………की कहने दें उसको भी ज़रा ,
उसके सीने में छिपा ……..हर इश्क~ए ~ज़ज्बात का फ़साना ।
तो “बेचारी ” ऐसे …… “खफा ” को न बनाए ,
उनसे लिपटने का ….. एक छोटा सा बहाना ।
“शादी” सिर्फ जिस्मों का ……एक एहसास नहीं ,
उसमे भी कई भाव …… छिपे होते हैं ।
कहने दो खुल कर उन भावों को ………जो अपने साथी से ,
तो वो न ढूँढें किसी में,अपने अधूरे छूटे हुए सपने ।
रिश्तों को रिश्तों में ऐसे बाँधो ……कि वो साथ न कभी छोड़े ,
बन जाएँ दोनों के ज़ज्बात हमेशा के लिए , एक “खुली हुई किताब ” के पन्ने ।।
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