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Saturday, February 28, 2015

An Adolescent Dilemma


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An Adolescent Dilemma

यूँ अचानक से एक बवाल आया ….
मेरे मन में उसे छूने  का एक ख्याल आया ,
हाँ मैं भी कदम रख चुका हूँ ……
किशोरावस्था की सीढ़ी पर चढ़ चुका हूँ ।

संगी-साथी कक्षा में करते हैं बातें …..
लड़के-लड़कियों के किस्से बताते सुनाते ,
कैसे मैं अपने पर काबू रखूँ ?
इस चुम्बकीय आकर्षण से अछूता रहूँ ।

समझते नहीं कोई मेरी व्यथा को ,
होता है क्या मेरी अंतरात्मा को ?
इस उम्र से कभी तो तुम भी थे गुज़रे ….
फिर क्यों कहते हो मुझे ,कि हुए नहीं साल पूरे ।

मैं अकेला सा बैठा सोचा करता हूँ …..
कि किससे मैं पूछूँ इस उम्र का तराना ,
कैसे मैं रोकूँ ….इस आँधी -तूफ़ान को ?
जो पल में जला देगा …मेरे भविष्य का शामियाना ।

सुनकर मैं बोली -उस किशोर की बातें ……
कि आओ सिखाऊँ तुम्हे तरीका ,पार करने का ये रातें ,
जब ख्वाइश हो मन में किसी को छूने की …..
तब आँख बंद करके लो गहरी साँस सीने की ।

अभी वक़्त नहीं आया ……तुम्हारा किसी से मिलन का ,
मत खोजो इस नाजुक उमर में …. रास्ता भंवर का,
ध्यान को एक बिंदु पर केन्द्रित करके ……
सोचो सिर्फ एक “बिन्दु” निर्धारित करके ।

सोचो वो सपनो से ….. हकीकत की दुनिया ,
जब नाम चमकेगा तुम्हारा ……और पढ़ेगी ये दुनिया ,
तब हँसोगे सोचकर ….. ये मिथ्या सी बातें,
कि क्यों करता था मैं …..किसी को छूने की बातें ।

हर उम्र का एक पड़ाव आता है …..
समय के साथ उस पर आगे बड़ा जाता है ,
जो पहले पड़ाव को पार करने की ख्वाइश रखते हैं ,
वो बाद में रोज़ अनियमित पथ पर भटकते हैं ।

ये जिस्मानी बदलाव एक स्वाभाविकता है ,
हर किशोर-किशोरी के मन की चंचलता है ,
इस चंचल मन पर लगाम लगाओ ….
अपनी इन्द्रियों को वश में करने का, एक “अभियान” चलाओ ।

माता -पिता और खानदान के नाम को आगे बढाना है ,
देश को अपनी सोच और सभ्यता से …ऊँचाई पर पहुँचाना है ,
इसलिए नवयुवकों में ….ऐसा ज़ज्बा भर दो ,
कि इस उमर को पार करने में ,वो समर्पित कर दें तन-मन को ।

“दृढ़ता” और “नयी सोच” …..तुम्हे सोने न देगी दिन-रात ,
हर छूने के ख़याल में …..तुम्हे महसूस होगा एक “पाप”,
अपराध बोध से जीना ……… कोई जीना नहीं है,
इसलिए इस ख़याल को संभालो,जब तक सीने में तुम्हारे दम है।।

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