This Hindi Poem highlights the Love of two Lovers in which the beloved was waiting for Her Lover’s gesture and after received the same She felt very happy to know that His Lover still waited for Her. Moreover She asked Him to did the same so that She might reply accordingly to His mood.
तेरे इशारे का इंतज़ार था मुझे ………. मैं एक ख़ुशी से भर गई ,
तुझे इंतज़ार है अब भी मेरा ………. इसी अदा पर तेरी मर गई ।
तुझे इंतज़ार है अब भी मेरा ………. इसी अदा पर तेरी मर गई ।
मैंने छोड़ दिया था अब आना ……… तेरी जुस्तजू में ए सनम ,
सोचा कि तुझे रहने दूँ तन्हा ……… क्यूँ करूँ झूठा भरम ,
तूने आकर के था पुकारा ………. कि लौट आयो ना एक बार फिर से ,
भला कैसे फिर रोक पाती खुद को …………. उड़ने को इस ज़मीं से ।
सोचा कि तुझे रहने दूँ तन्हा ……… क्यूँ करूँ झूठा भरम ,
तूने आकर के था पुकारा ………. कि लौट आयो ना एक बार फिर से ,
भला कैसे फिर रोक पाती खुद को …………. उड़ने को इस ज़मीं से ।
तेरे इशारे का इंतज़ार था मुझे ………. मैं एक ख़ुशी से भर गई …………
तेरे साथ बिताए वो लम्हे ……… मुझे आज भी परेशाँ करते हैं ,
जिनमे थी एक ज़िंदगी ……… उन्हें जीने की वजह हम कहते हैं ,
बहुत सोचा कि भूल जाऊँ अपने उस इश्क़ को ………. एक सपन मान ,
मगर फिर भी हर सपने में …………. आता रहा तू बन एक मेहमान ।
जिनमे थी एक ज़िंदगी ……… उन्हें जीने की वजह हम कहते हैं ,
बहुत सोचा कि भूल जाऊँ अपने उस इश्क़ को ………. एक सपन मान ,
मगर फिर भी हर सपने में …………. आता रहा तू बन एक मेहमान ।
तेरे इशारे का इंतज़ार था मुझे ………. मैं एक ख़ुशी से भर गई …………
तू करता रहा कभी इंतज़ार मेरा ……… कभी मैं करती रही चुपचाप से ,
ये सोच कि शायद मिलेंगे अब फिर ……… जैसे मिले थे पहले कभी इत्तिफ़ाक से ,
मगर अधूरा ही रह जाता है हर बार ………वो सपना और वो रात सनम अपनी ,
जहाँ सुलगती थी एक आग ………….मद्धम-मद्धम सी कभी इस दिल की ।
ये सोच कि शायद मिलेंगे अब फिर ……… जैसे मिले थे पहले कभी इत्तिफ़ाक से ,
मगर अधूरा ही रह जाता है हर बार ………वो सपना और वो रात सनम अपनी ,
जहाँ सुलगती थी एक आग ………….मद्धम-मद्धम सी कभी इस दिल की ।
तेरे इशारे का इंतज़ार था मुझे ………. मैं एक ख़ुशी से भर गई …………
मुझे था यकीन इस बार मगर ……… कि कम ना होगा अपना प्यार सनम ,
या तो आकर के तू आवाज़ देगा ………या फिर करती रहूँगी तेरा इंतज़ार मैं हर जनम ,
ये शर्म~ओ~हया गर ना होता नारी का गहना ……. तो मैं खुद ही तुझको गले लगाती ,
अपने सोए हुए अरमानो को तब ………….तेरे संग जीकर जगाती ।
या तो आकर के तू आवाज़ देगा ………या फिर करती रहूँगी तेरा इंतज़ार मैं हर जनम ,
ये शर्म~ओ~हया गर ना होता नारी का गहना ……. तो मैं खुद ही तुझको गले लगाती ,
अपने सोए हुए अरमानो को तब ………….तेरे संग जीकर जगाती ।
तेरे इशारे का इंतज़ार था मुझे ………. मैं एक ख़ुशी से भर गई …………
मगर ना कर सकी कोई इशारा तुझे ………और ना ही फ़रियाद सनम ,
तू जैसा है अच्छा ही है ………बस यही है मेरी अब ये सोच इस जनम ,
तू करता रह हर बार इशारा ……. मैं समझ कर उसे दूँगी तब तुझे जवाब ,
कि तू हकीकत से ज्यादा अच्छा है ………… क्योंकि तू आता है हर बार बन कर एक ख्वाब ॥
तू जैसा है अच्छा ही है ………बस यही है मेरी अब ये सोच इस जनम ,
तू करता रह हर बार इशारा ……. मैं समझ कर उसे दूँगी तब तुझे जवाब ,
कि तू हकीकत से ज्यादा अच्छा है ………… क्योंकि तू आता है हर बार बन कर एक ख्वाब ॥
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