This Hindi poem highlights the physical pain of the beloved in which She was getting ill day by day due to the excess of the craziness of Her Lover to get in touch with His company via Social networking sites, but still she likes to be getting down by Her Body As She Likes the company Of Her Lover and doesn’t want to go away from Him.
तेरा साथ पाने की चाहत में ……….ये जिस्म भी अब दगा देने लगा ,
हर अंग कतरा-कतरा बन ………अब रेत में दफ्न कहीं होने लगा ।
हर अंग कतरा-कतरा बन ………अब रेत में दफ्न कहीं होने लगा ।
फक्र था हमें कभी जिन नैनों पर ……अब वो भी ओझल से हुए जाते हैं ,
जिस दिमाग की सोच ने तुझे कभी पाया था ……अब उसके भी तार झनझनाते हैं ।
जिस दिमाग की सोच ने तुझे कभी पाया था ……अब उसके भी तार झनझनाते हैं ।
तेरे साथ चल जिन राहों पर …………. दो पलों का सुकून मैंने पाया था ,
उस सुकून के आगे देख ………. मेरे कदम भी अब डगमगाते हैं ।
उस सुकून के आगे देख ………. मेरे कदम भी अब डगमगाते हैं ।
मैं अंदर-अंदर से कहीं टूट रही ………. फिर भी तुझमे ख़ुशी को ढूँढ रही ,
तेरे साथ की बेकरारी में …………. खुद अपने ही कफ्न को कहीं बुन रही ।
तेरे साथ की बेकरारी में …………. खुद अपने ही कफ्न को कहीं बुन रही ।
यही तो मोहब्बत होती है शायद ………जिसमे कई जिस्म जल जाते हैं ,
किसी के साथ को पाने के लिए ………. कई जनमों तक जन्म नए पाते हैं ।
किसी के साथ को पाने के लिए ………. कई जनमों तक जन्म नए पाते हैं ।
सामने रखी बोतल शराब की ……… कह रही है मुझसे मुझे भूल जा ,
मेरे अंदर नशा एक भरकर ………. कह रही है मयकदे में अब ना जा ।
मेरे अंदर नशा एक भरकर ………. कह रही है मयकदे में अब ना जा ।
देने दो दगा अब इस जिस्म को भी ……… क्या हुआ जो ये पहले तुमसे गल जाएगा ,
कम से कम तेरे साथ से ………. अपनी एक नई प्रेम-कहानी तो लिख जाएगा ।
कम से कम तेरे साथ से ………. अपनी एक नई प्रेम-कहानी तो लिख जाएगा ।
यूँ भी कहाँ सुकून था ………. तुझे पाने से पहले इस संसार में ,
अब गर सुकून है थोड़ा सा ……… फिर क्यूँ बेच दें उसे सरे बाज़ार में ?
अब गर सुकून है थोड़ा सा ……… फिर क्यूँ बेच दें उसे सरे बाज़ार में ?
दगाबाज़ ये जिस्म कहलाएगा अगर ………. तो इसकी फितरत ही थी गल जाने की एक दिन ,
रूह में कोई दग़ाबाज़ी नहीं ……… इसी फितरत को मिलेगी बाज़ी एक दिन ।
रूह में कोई दग़ाबाज़ी नहीं ……… इसी फितरत को मिलेगी बाज़ी एक दिन ।
तूने ख्वाइश की थी जिस ख़ुशी की कभी ……… उस ख़ुशी में भी अब दाग लगने लगा ,
तेरा साथ पाने की चाहत में देख ………. हर कतरे-कतरे से लहू अब बहने लगा ।
तेरा साथ पाने की चाहत में देख ………. हर कतरे-कतरे से लहू अब बहने लगा ।
हम फिर भी तेरे साथ को ………छोड़ने की तब तक हिमाकत ना करेंगे ,
जब तक ये जान इस जिस्म में रहेगी ………. तब तक सिर्फ तेरा ही सज़दा करेंगे ॥
जब तक ये जान इस जिस्म में रहेगी ………. तब तक सिर्फ तेरा ही सज़दा करेंगे ॥
No comments:
Post a Comment