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Tuesday, June 2, 2015

Ek kalam ……… Ek Glass



This Hindi poem highlights a Writer’s wish in which He wishes a fountain pen and a bottle of wine for His life as He wants to get drowned himself for the same and eager to search the new thoughts that will emerge from it.
grapes-wine-bottle-glass
Hindi Poem on Writer’s Wish – Ek kalam ……… Ek Glass
बस एक कलम ,एक गिलास  ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ  ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मेरा जाम बनेगा जब छलकता प्याला  ………. मेरे लेखों से निकलेगी तब ज्वाला ,
मेरे जाम में होगी जब ठंडक  ……… मेरे लेखों में बढ़ेगी तब प्रेम की कीमत ।
बस एक कलम ,एक गिलास  ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ  ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
पीना, लिखना और जीना ………. सब आते-जाते तराने हैं ,
एक लेखक को लोग तब समझें ……… जब बिकते उसके अफ़साने हैं ।
बस एक कलम ,एक गिलास  ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ  ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मुझे मदिरा जब-जब स्याही लगे  ………. तब-तब अंदर एक गीत जगे ,
मुझे मदिरा जब-जब प्यास लगे……… तब-तब लिखने की आस बढ़े ।
बस एक कलम ,एक गिलास  ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ  ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मेरे प्याले में जब-जब होगी गर्मी  ………. तब-तब छलकेगी वासनाओं की बेशर्मी ,
मेरा प्याला जब होगा ठंडा ……… तब हुस्न भी यहाँ पड़ा होगा मंदा ।
बस एक कलम ,एक गिलास  ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ  ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
लेखक भी तो नशे का ही आदी है  ………. बस उसके नशे की होती है एक अलग परिभाषा ,
कभी वो इस नशे में खुद डूबता है  ……… कभी सारे संसार को रख देता है प्यासा ।
बस एक कलम ,एक गिलास  ………… काफी है मेरे जीने को ,
लिखता रहूँ , पीता रहूँ  ……… खुद ही में खुद को भिगोने को ।
मैं लेखक बड़ा ही मतवाला  ………. मुझे जाम की हरदम एक आस रहे ,
बिन जाम के शब्द ये रुक से जाते  ……… पर जाम पीकर ये फिर आबाद चलें ॥

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