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Wednesday, April 29, 2015

A Known Defeat

In this Hindi poem the poetess and Her lover both are on a track of same competition but due to Her Love She knowingly want to defeat as She wants that Her Lover will become the winner.

Three-rose-buds-red
Hindi Poem On Love – A Known Defeat

तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
तेरी हर जीत में ……मैं अपनी हार का जश्न मनाऊँ कैसे ?

तुझसे जीतने की ……जो कभी एक ख्वाइश थी जाना ,
बता उस ख्वाइश को …….मैं अब राख में मिलाऊँ कैसे ?

वो था एक दौर ज़माने का ……जो गुज़र गया ,
बता अब इस दौर में …….मैं तुझको जिताऊँ कैसे ?

तेरी जीत में ही अब मुझे …….अपनी हार नज़र आती है ,
फिर उस हार को मैं अपने “इश्क” से ……जवां बनाऊँ कैसे ?

तू जीत कर अब पाएगा जो …….वो मेरी हार का इनाम होगा ,
बता अब इन मंजिलों पर तेरे साथ फिर  ……..कदम से कदम मिलाऊँ कैसे ?

मैंने कर दिया अब से …….खुद को तेरे हवाले ,
तेरे नए रास्तों में बता फिर …….अब काँटे बिछाऊँ कैसे ?

तू जीतेगा जब ……..तब  वो मेरी पहचान का सबब होगा ,
अपनी पहचान को ज़िंदा रखने के लिए ……मैं तेरी पहचान अब बनाऊँ कैसे ?

तुझे  जिताने की करती हूँ मैं ……अब से लाखों कोशिश ,
बता हर कोशिश को मैं अब …….एक सिलसिला बनाऊँ कैसे ?

ऐसा चाहने वाला ……बड़ी मुश्किल से मिला करता है ,
जिसे जीतने से ज्यादा …….हारने की ख्वाइश होती है ।

क्योंकि वो उस हार में भी …..जीत का रंग भरता है ,
जिसमे उसके “यार”…….की मेहनत बसी होती है ।

मैं तेरी हर मेहनत की …….एक कदरदान सही ,
बता उस मेहनत को ……..मैं एक कारवाँ बनाऊँ कैसे ?

तू जीतेगा एक दिन …….इससे ज्यादा किसी बात की ख़ुशी नहीं मुझे ,
तू गर हारे ….तो उस हार को …….दुश्मन की नज़रों से बचाऊँ कैसे ?

तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
तुझे अपनी इस …..नई चाहत का साथ निभाने का सबब ……बताऊँ कैसे ?

तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
“जीत” से ज्यादा …..”हार” की कशिश ……से तुझे रिझाऊँ कैसे ?

तेरे आगे ……मैं खुद को हराऊँ कैसे ?
मैं तेरी जीत की एक दुल्हन बन ……..बता तेरे बिस्तर पर बिछ जाऊँ कैसे ?

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