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लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा लाल रंग का गुलाल …
तो याद आए तुम्हारे गोरे से गाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा हरे रंग का गुलाल …
तो याद आई तुम्हारी हिरनी सी चाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा काले रंग का गुलाल …
तो याद आए तुम्हारे भूरे से बाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा गुलाबी रंग का गुलाल …
तो तेरे सुर्ख लबों की सोच से मैं हुआ बेहाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा बैंगनी रंग का गुलाल …
तो याद आई तेरी मीठी सी ….बोली कमाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा पीले रंग का गुलाल …
तो यादों में थी …तेरे कानों की बाली ….जो देती थी ताल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा सतरंगी रंग का गुलाल …
तो याद आया था तेरा ….हर अंग विशाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा नीले रंग का गुलाल …
तू आसमान में थी ….बुनती मेरी ….कल्पनायों के जाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
मगर इतने रंगों के देखे गुलाल ,
पर मिला न कोई ….अब तक तेरे लिए गुलाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
मैं खाली हाथ ही लौटा …..लिए ये सवाल ,
कि हर रंग में रंगी तू ……बनकर बवाल ।
जब तू पहले से ही थी …इतनी कमाल ,
फिर क्यों लेकर आऊँ मैं …तेरे लिए कोई गुलाल ?
तू है रंगों से रंगी ……एक मूरत विशाल ,
चल बिन गुलाल के ही होली खेलें …..हम दोनों इस साल ।।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा लाल रंग का गुलाल …
तो याद आए तुम्हारे गोरे से गाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा हरे रंग का गुलाल …
तो याद आई तुम्हारी हिरनी सी चाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा काले रंग का गुलाल …
तो याद आए तुम्हारे भूरे से बाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा गुलाबी रंग का गुलाल …
तो तेरे सुर्ख लबों की सोच से मैं हुआ बेहाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा बैंगनी रंग का गुलाल …
तो याद आई तेरी मीठी सी ….बोली कमाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा पीले रंग का गुलाल …
तो यादों में थी …तेरे कानों की बाली ….जो देती थी ताल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा सतरंगी रंग का गुलाल …
तो याद आया था तेरा ….हर अंग विशाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
जब देखा नीले रंग का गुलाल …
तू आसमान में थी ….बुनती मेरी ….कल्पनायों के जाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
मगर इतने रंगों के देखे गुलाल ,
पर मिला न कोई ….अब तक तेरे लिए गुलाल ।
लेने चला मैं ऐसा गुलाल ….
जो फबे तुम्हारे रंग पर बेमिसाल ,
मैं खाली हाथ ही लौटा …..लिए ये सवाल ,
कि हर रंग में रंगी तू ……बनकर बवाल ।
जब तू पहले से ही थी …इतनी कमाल ,
फिर क्यों लेकर आऊँ मैं …तेरे लिए कोई गुलाल ?
तू है रंगों से रंगी ……एक मूरत विशाल ,
चल बिन गुलाल के ही होली खेलें …..हम दोनों इस साल ।।
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