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Thursday, March 19, 2015

Saat Fere- A Fake Ties

This Hindi poem highlights the issue of broken marriage in today generation where they tie their marriage knots under their parents pressure but the tie of that knot is very-very weak

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Hindi Poem on Arranged Marriage – Saat Fere- A Fake Ties

सात फेरों के सात बंधन …..सात दिन भी ना साथ चल सके ,
जो निभाते थे कभी कसमें सात जन्मों की ,
उनके सात अक्षर भी ….सात मिनटों में फीके लगने लगे ।

शादियाँ नहीं अब तो ये समझौता है ……सिर्फ जिंदगी का ,
साथ रहने की भी कई शर्तें हैं ,
ये खुलासा है …….इन बंधनों का ।

अब ना वो दूल्हा है ना दुल्हन है …….जिसमे थी तड़प एक दूजे को पाने की ,
अब ना वो रंग है ……ना रौनक है ,
जिसमे थी तलब ……एक-दूजे में समाने की ।

बस एक औपचारिकता रह गयी है …….बंधनों में खुद को बाँधने की ,
और अगले ही पल में तोड़ देंगे ,
हर उस “औपचारिकता” को …..कह ज़बरदस्ती ज़माने की ।

हर दस में से चार शादी ……रोज़ टूटा किया करती हैं ,
सात फेरों से बंधी थी जो कभी एक दिन ,
उनमे कभी दूल्हा खफा होता है ……तो कभी दुल्हन दगा देती है ।

कहीं एक “मैं” दोनों की ……उनके सर पर चढ़ी होती है ,
जिसमे फँसे दोनों आज़ादी को तड़पते हैं ,
तो कभी किसी तीसरे की कहानी ……वहाँ शब्दों को पिरोती है ।

वो “सात फेरे”…..जो मंडप में किये थे उन्होंने पूरे ,
वो सात महीनो में ही हो गए देखो ,
फिर से ना जाने ……कितने अधूरे?

फिर क्यूँ शादियाँ करने पर …..मजबूर ये समाज करता है ?
जब Live-in relationship से ,
दोनों का ……भरपूर काम चलता है ।

ये कच्चे धागे “सात फेरों” के …..मंडप पर ही टूट जाने दो ,
क्यूँ इन्हें ज़बरदस्ती बाँध ,
“सात पलों” को भी ……अपनी जिंदगी से जाने दो ।

गर मन से मन का मिलन होगा …..इन सात फेरों में ,
तो किसी बंधन की बेड़ी फिर ना सजेगी ,
क्योंकि तब बंधे होंगे वो …..एक अंदरूनी चाहत के घेरे में ।

ऐसे “सात फेरे ” रह गए देखो ……..भला अब किस काम के ?
जिनमे आग है ……मन्त्र हैं ……सात घेरे हैं ,
मगर रिश्तें हैं गर ……तो बस सिर्फ नाम के ॥

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