(An alcoholic’s life was dependent on alcohol. Without alcohol his
life was meaningless. But one day he decided to quit drinking but it was
not easy.)
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मुझे शौक जो होता जीने का …..तो मैंने पीना कब का छोड़ दिया होता ,
बस इस शौक से अब मन भर सा गया …..फिर क्यूँ वो इतना चित-चोर करे ?
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरा खाली जाम का पैमाना …..कोई आकर गर भर देगा यूँ ,
मेरी उम्र भी उसको लग जाए ….मेरा जाम जो इतना शोर करे ।
मैं मयकदे का आशिक हूँ ……अपनी महबूबा को ढूँढ रहा ,
वो बोतल में बंद हो बैठी …….कोई उसको मेरी ओर करे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मैं रंग-बिरंगी “Wine” से …….”Whisky” के नशे को …अब चखने लगा ,
एक सीधी-साधी औरत छोड़ …….गोरी मेमों को तकने लगा ।
लोग कहते हैं ….”नशा” बेगाना है ……एक दिन तुमको खा जाएगा ,
इस दारु,रम के चक्कर में …….जीना मुश्किल हो जाएगा ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मैं जाम पर जाम बनाता रहा …..हर घूँट को होठों पर लाता रहा ,
इस दिन और रात की बेला में ……सिर्फ “शराब” को गले लगाता रहा ।
हर घूँट मेरे जिस्म को ……फिर बहकने पर मजबूर करे ,
मुझे “जीने” से बेहतर अब ….”नशे” की आँधी का ये शोर लगे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मैं छलिया देखो बन सा गया …..इस शराब के ठेके पे,
वो नागिन सी मुझको डसने लगी …..जैसे काली रात अँधेरे में ।
धीरे-धीरे मैं डरने लगा ….वो और जवान होने लगी ,
मुझे अपना आदी बना ….वो किसी और की मेहमान ….अब होने लगी ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरा होश अब उसने छीन लिया ……जैसे बिन बादल की बस्ती में ,
मुझे जीने की अब चाहत थी ……उसको पाने की हस्ती में ।
मैं मारा-मारा फिरता था ….कोई मेरी लाज बचा लो यूँ ,
इस “शराब” की गन्दी लत से …..अब मुझको कोई सँभालो यूँ ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे…….मजबूर करे जब पीने पे ,
मैं बिन पिए चीखा और …..कि खींच तू मुझे समुन्दर से ।
मुझे शौक था अब जीने का …….मैंने पीना बिलकुल छोड़ दिया ,
अपनी जिंदगी को गले लगा ……मैंने शराब से नाता तोड़ दिया ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….अब जब भी पीने पर मजबूर करे ,
मैं जीकर बहका और ….वो जितना पीने पर मदहोश करे ।
मुझे शौक है अब सिर्फ जीने का …..सिर्फ जीने का …..सिर्फ जीने का ,
उस शौक की खातिर देखो अब ……मेरी “शराब ” ही मेरी पहचान बने ॥
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मुझे शौक जो होता जीने का …..तो मैंने पीना कब का छोड़ दिया होता ,
बस इस शौक से अब मन भर सा गया …..फिर क्यूँ वो इतना चित-चोर करे ?
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरा खाली जाम का पैमाना …..कोई आकर गर भर देगा यूँ ,
मेरी उम्र भी उसको लग जाए ….मेरा जाम जो इतना शोर करे ।
मैं मयकदे का आशिक हूँ ……अपनी महबूबा को ढूँढ रहा ,
वो बोतल में बंद हो बैठी …….कोई उसको मेरी ओर करे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मैं रंग-बिरंगी “Wine” से …….”Whisky” के नशे को …अब चखने लगा ,
एक सीधी-साधी औरत छोड़ …….गोरी मेमों को तकने लगा ।
लोग कहते हैं ….”नशा” बेगाना है ……एक दिन तुमको खा जाएगा ,
इस दारु,रम के चक्कर में …….जीना मुश्किल हो जाएगा ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मैं जाम पर जाम बनाता रहा …..हर घूँट को होठों पर लाता रहा ,
इस दिन और रात की बेला में ……सिर्फ “शराब” को गले लगाता रहा ।
हर घूँट मेरे जिस्म को ……फिर बहकने पर मजबूर करे ,
मुझे “जीने” से बेहतर अब ….”नशे” की आँधी का ये शोर लगे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मैं छलिया देखो बन सा गया …..इस शराब के ठेके पे,
वो नागिन सी मुझको डसने लगी …..जैसे काली रात अँधेरे में ।
धीरे-धीरे मैं डरने लगा ….वो और जवान होने लगी ,
मुझे अपना आदी बना ….वो किसी और की मेहमान ….अब होने लगी ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरा होश अब उसने छीन लिया ……जैसे बिन बादल की बस्ती में ,
मुझे जीने की अब चाहत थी ……उसको पाने की हस्ती में ।
मैं मारा-मारा फिरता था ….कोई मेरी लाज बचा लो यूँ ,
इस “शराब” की गन्दी लत से …..अब मुझको कोई सँभालो यूँ ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे…….मजबूर करे जब पीने पे ,
मैं बिन पिए चीखा और …..कि खींच तू मुझे समुन्दर से ।
मुझे शौक था अब जीने का …….मैंने पीना बिलकुल छोड़ दिया ,
अपनी जिंदगी को गले लगा ……मैंने शराब से नाता तोड़ दिया ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….पीने पर मजबूर करे ,
मैं पीकर बहका और ….वो इतना जीने पर मजबूर करे ।
मेरी शराब हर रोज़ मुझे ….अब जब भी पीने पर मजबूर करे ,
मैं जीकर बहका और ….वो जितना पीने पर मदहोश करे ।
मुझे शौक है अब सिर्फ जीने का …..सिर्फ जीने का …..सिर्फ जीने का ,
उस शौक की खातिर देखो अब ……मेरी “शराब ” ही मेरी पहचान बने ॥
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