This Hindi poem highlights the feelings of a woman in which she was taking the fantasy of another man in her imagination.
मुझे “काश” में जीने दो …..मैं हर “काश” में तुम्हे बदनाम कर दूँगी ,
तेरे जिस्म को अपने जिस्म से मिलाकर ……देख क़त्ल ~ए ~आम कर दूँगी ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मैं तेरे दीदार की तलब रखती हूँ ,
तेरी भोली सी हँसी की खातिर ……अपना सब कुछ कुर्बान करती हूँ ।
मुझे “काश” में जीने दो …..मैं तेरी उम्मीद की वफायों के आगे ,
खुद जलने की सज़ा देती हूँ खुद को …..फिर भी ना जाने मन तेरी ओर क्यूँ भागे ?
मुझे “काश” में जीने दो ……मुझे हर मोड़ पर तेरा इंतज़ार है ,
बस मोड़ कभी आयेगा नहीं ……इसी गम से ये दिल बेकरार है ।
मुझे “काश” में जीने दो ….बस किसी भूल को न पनपने देना ,
मैं हर पल भरोसे में जीती हूँ ……उस भरोसे को कभी मत तोड़ देना ।
मुझे “काश” में जीने दो ….तेरी सूरत को न जाने मैंने क्या माना ,
तू कभी तन्हाई में सोचेगा जब ……तब धड़केगा तेरा भी दिल दीवाना ।
मुझे “काश” में जीने दो ……क्या पता कभी वो “काश” भी रो पड़े ,
जब जिस्म से जान जाते-जाते …..तेरे नाम को लफ़्ज़ों से पढ़े ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मैं हर पल में खुद को बाँध चुकी ,
तेरी हर ख्वाइश को अधूरा छोड़ के …..अपनी बेबसी को सज़ा मान चुकी ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मेरा हर “काश” सबसे निराला है ,
कम से कम उस “काश” में तो ……तेरी चाहत का बोलबाला है ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मेरा “काश” जब मेरे मन में पिघलता है ,
तेरे इश्क की गर्मी से वो ……मेरी नीयत को बदनाम करता है ।
मुझे “काश” में जीने दो ……इस “काश” के आगे मैं मर मिटी ,
तेरी हर छोटी-छोटी सी अदा को हकीकत समझ ……आग के दरिया को पार कर चुकी ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मत छीनो मुझसे मेरी “काश ” की दौलत ,
इन दो पलों की खुशियों की खातिर ……मैं बन गयी शायद किसी और की “औरत” ॥
मुझे “काश” में जीने दो …..मैं हर “काश” में तुम्हे बदनाम कर दूँगी ,
तेरे जिस्म को अपने जिस्म से मिलाकर ……देख क़त्ल ~ए ~आम कर दूँगी ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मैं तेरे दीदार की तलब रखती हूँ ,
तेरी भोली सी हँसी की खातिर ……अपना सब कुछ कुर्बान करती हूँ ।
मुझे “काश” में जीने दो …..मैं तेरी उम्मीद की वफायों के आगे ,
खुद जलने की सज़ा देती हूँ खुद को …..फिर भी ना जाने मन तेरी ओर क्यूँ भागे ?
मुझे “काश” में जीने दो ……मुझे हर मोड़ पर तेरा इंतज़ार है ,
बस मोड़ कभी आयेगा नहीं ……इसी गम से ये दिल बेकरार है ।
मुझे “काश” में जीने दो ….बस किसी भूल को न पनपने देना ,
मैं हर पल भरोसे में जीती हूँ ……उस भरोसे को कभी मत तोड़ देना ।
मुझे “काश” में जीने दो ….तेरी सूरत को न जाने मैंने क्या माना ,
तू कभी तन्हाई में सोचेगा जब ……तब धड़केगा तेरा भी दिल दीवाना ।
मुझे “काश” में जीने दो ……क्या पता कभी वो “काश” भी रो पड़े ,
जब जिस्म से जान जाते-जाते …..तेरे नाम को लफ़्ज़ों से पढ़े ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मैं हर पल में खुद को बाँध चुकी ,
तेरी हर ख्वाइश को अधूरा छोड़ के …..अपनी बेबसी को सज़ा मान चुकी ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मेरा हर “काश” सबसे निराला है ,
कम से कम उस “काश” में तो ……तेरी चाहत का बोलबाला है ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मेरा “काश” जब मेरे मन में पिघलता है ,
तेरे इश्क की गर्मी से वो ……मेरी नीयत को बदनाम करता है ।
मुझे “काश” में जीने दो ……इस “काश” के आगे मैं मर मिटी ,
तेरी हर छोटी-छोटी सी अदा को हकीकत समझ ……आग के दरिया को पार कर चुकी ।
मुझे “काश” में जीने दो ……मत छीनो मुझसे मेरी “काश ” की दौलत ,
इन दो पलों की खुशियों की खातिर ……मैं बन गयी शायद किसी और की “औरत” ॥
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