उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
जहाँ सुकून और चैन खो गए ,
बस आँखों में एक काली गहरी सी स्याही है ।
उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
तन्हाईयों में जीने का …..
एक हाथ जो थामा था उसने ,
उस हाथ की ही रेखायों में ,
तकदीर छिनने की रेखा उभर आई है ।
उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
होठों पर देकर इतनी मुस्कुराहट ,
अब सीने में ही कहीं दफनाई है ,
एक शिकन की रेखा मेरे चेहरे पर ,
न जाने फिर से क्यूँ नज़र आई है ।
उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
धड़कने धड़कते -धड़कते ……
धडकनों से ही वापस टकराई हैं ,
न जाने क्यूँ इन धडकनों ने भी ,
अब न धड़कने की कसम खाई है ।
उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
वो आवारगी …वो तिश्नगी ……वो दीवानगी ,
सब दो दिन की मेहमान नज़र आई है ,
एक मासूम से चेहरे पर अब तो ,
एक कठोरता की लहर दौड़ आई है ।
उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
बहुत मुश्किल होता है अक्सर ,
वापस आना अपने उड़ते हुए ख्यालों से ,
एक दर्द ऐसा होता है तब ,
जिसमे कई ज़ख्मों की गहराई है ।
उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
बैरी बन गया सारा ज़माना ,
जिसे मैंने दो पल की ख़ुशी भी ….न अब तक दिखाई है ,
फिर भी उसके बिना जीने की ,
हर कसम उसने मुझसे खिलवाई है ।
उसके बिना जी कर देखा …. तो मैंने पाया ,
कि जैसे रातों की एक लम्बी -गहरी सी खाई है ।
जी चाहता है कि आग लगा दूँ ,
हर उस ठौर-ठिकाने को ,
जहाँ बन के मसीहा वो रहता है ,
और उसकी मसीहत में …..मेरे इश्क की तड़प समाई है ।।
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