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Friday, February 27, 2015

In Hope of Getting Published

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Hindi Poem – In Hope of Getting Published

पब्लिशिंग  की आस में,
अपने contents थामे हाथ में,
मैं रोज़ पब्लिशिंग हाउस में भटकने लगा ,
अपनी नयी पहचान बनाने को तरसने लगा ।

लेकिन आजकल के पब्लिशर्स की जुबान ,
जो सुनेगा उसका धरा रह जाएगा सब अरमान ,
पब्लिशर कहता- “पैसे की हमसे कोई आस न करना ,
“contents” तुम्हारे बकवास हैं ऐसा सोच कर कदम रखना ।

Writers को promote हम करते नहीं,
क्योंकि  “Speed Post ” का खर्चा हम bear  करते नहीं,
हज़ारों Writers यूँ ही रोज़ आखिरी साँसें भरते हैं ,
“कबीर”,”प्रेमचंद ” बनने को घर से निकल पड़ते हैं ।

बहुत मायूसी भरा चेहरा मैंने बनाया ,
आँसू पलकों पर लाकर उन्हें गिरने से बचाया ,
रोज़ रात कलम घिस-घिस कर इस मुकाम पर खुद को पहुँचाया,
और आज मैं दस कदम भी अकेला न चल पाया ।

Writers की ऐसी दशा सोच कर मन घबराया ,
“Royalty” तो दूर की बात, उन्हें समझने भी न कोई आया ।
घर पहुँच Internet पर बेबस सा खुद को पाया ,
अपने मन में उठे सैलाब को Facebook  पर जाकर नहलाया ।।

सच ही तो है कि “Social Networking sites “कामयाब हैं ,
कम से कम यहाँ सांस लेने को तो एक रोशनदान है ।
वरना Writers का slow -suicide यूँ ही अपने ज़ोरों पर होता,
साहित्य धीरे-धीरे किसी बंद कमरे के Museum में होता ।।

बन जाए जो कोई Writers की भी Association,
तो  Employment को क्या न मिल जाए Destination ?
फिर क्यूँ नहीं सरकार ऐसा बेहतर कदम उठाती ?
“साहित्य ” की पहचान खोने से पहले ही उसे सँवार पाती ।।

मौका न दिया गर नए Writers को चमकने का,
तो भीड़ में खो जाएगा कहीं साहित्य सपनों का,
ये युग बीत जाएगा ……बीत जायेगी इस युग की भी सोच,
और दफ़न हो जाएगी कहीं साहित्य की नयी खोज़ ।।

हम दफ़न न होने देंगे अपने आज के खयालातों को,
चाहे पब्लिशर की सुने या सुने दुनिया वालोँ की बातों को ,
अपने “Contents ” को थामे हम रोज़ चक्कर लगाएँगे ,
“पब्लिशिंग की आस में ” कभी तो हम भी मुकाम पाएँगे ।।

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