This Hindi poem highlights the pain of a beloved when She left Her wound open in the memory of Her Lover and felt the extreme pain from it but later when that pain became intolerable for Her then she cured Her with some ointment. Later She gave a lesson to all those beloved not to left open her wound and covered it in the Hope that their Lover will soon be in touch with Her.
ज़ख्म रिस-रिस कर दर्द …………. और ज्यादा देता है ,
तेरे आने की उम्मीद को …… इस दिल में जगह देता है ।
तेरे आने की उम्मीद को …… इस दिल में जगह देता है ।
ज़ख्मों से बहता पानी …………. मेरे दर्द को दे एक कहानी ,
दर्द जितना ज्यादा हो ……… वो उतना और मज़ा देता है ।
दर्द जितना ज्यादा हो ……… वो उतना और मज़ा देता है ।
ज़ख्म रिस-रिस कर दर्द …………. और ज्यादा देता है ………….
रात भर तड़प के निकलें …………. तेरी याद में जो आँसू ,
वो दिल ही दिल में कहते …… कि तुझे अपना अब मैं मानूँ ।
मेरे दर्द से तब बयाँ हो …………. मेरे प्यार की ज़ुबानी ,
मैं जितना ज्यादा तड़पूँ ……… तुझे उतनी अगन है बुझानी ।
मैं जितना ज्यादा तड़पूँ ……… तुझे उतनी अगन है बुझानी ।
ज़ख्म रिस-रिस कर दर्द …………. और ज्यादा देता है ………….
ज़ख्म नासूर बन अब ………… मेरी राहों को रोके ,
तुझसे मिलने की …… उन सारी उम्मीदों को टोके ।
तुझसे मिलने की …… उन सारी उम्मीदों को टोके ।
दर्द ही दर्द के आलम से …………. अब हम और ज्यादा मरते हैं ,
कभी तुझ पर कभी इस दुनिया पर ……… भरोसा करते हैं ।
कभी तुझ पर कभी इस दुनिया पर ……… भरोसा करते हैं ।
ज़ख्म रिस-रिस कर दर्द …………. और ज्यादा देता है ………….
सोचा कि छोड़ दूँ इस ज़ख्म को अब ………… यूँ ही खुला ,
ना कोई दवा ना किसी मरहम से भरूँ …… मैं इसको यहाँ ।
ना कोई दवा ना किसी मरहम से भरूँ …… मैं इसको यहाँ ।
बहुत ही टीस सी उठने लगी …………. मेरे दर्द ~ ए ~ ज़ख्म से जब ,
मैं बेहोश सी होने लगी ……… तुझे याद कर-कर के तब ।
मैं बेहोश सी होने लगी ……… तुझे याद कर-कर के तब ।
ज़ख्म रिस-रिस कर दर्द …………. और ज्यादा देता है ………….
सह ना पाई तेरी जुदाई का जब ………… और ज्यादा गम ,
ज़ख्म को मरहम से ढँक …… दर्द को करने लगी तब दफ़्न ।
ज़ख्म को मरहम से ढँक …… दर्द को करने लगी तब दफ़्न ।
ज़ख्म तब ख़ुश्क होने लगा …………. मेरी दुहाई से ,
तू भी वापस से फिर लौट आया ……… मेरी तन्हाई में ।
तू भी वापस से फिर लौट आया ……… मेरी तन्हाई में ।
ज़ख्म रिस-रिस कर दर्द …………. और ज्यादा देता है ………….
ज़ख्म को रिसने ना दो कभी ………… अपने महबूब की ख़ातिर ,
मरहम से ढाँप दो उसे …… बना के एक उम्मीद आखिर ।
मरहम से ढाँप दो उसे …… बना के एक उम्मीद आखिर ।
वो आएगा ज़रूर तब …………. तुम्हारे रिसते ज़ख्मों को भरने ,
नासूर ना बन जाएँ वो कहीं ……… इससे पहले अधूरे सपनों को पूरा करने ॥
नासूर ना बन जाएँ वो कहीं ……… इससे पहले अधूरे सपनों को पूरा करने ॥
No comments:
Post a Comment