This Hindi poem highlights the pain of a beloved , in which she remembered her Lover at the time of Love Making with Her partner and after finding Herself failed in the intimacy she broke down like a fallen dry leaf.
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ,
सूखी धरती ,सूखा आसमाँ लिए हुए ………अपने साथ ।
सूखी धरती ,सूखा आसमाँ लिए हुए ………अपने साथ ।
याद कर प्यार भरी मीठी सी बातों की …… वो सौगात ,
क्यूँ ना आई सावन की घटा …………. फिर से कल रात ?
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ,
सूखी धरती ,सूखा आसमाँ लिए हुए ………अपने साथ ।
क्यूँ ना आई सावन की घटा …………. फिर से कल रात ?
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ,
सूखी धरती ,सूखा आसमाँ लिए हुए ………अपने साथ ।
उसके साथ ने बाँधा था कभी ………. समाँ कुछ ऐसा ,
कि हर सूखा पत्ता भीगा हुआ सा ……… लगता था जैसा ,
सूखी धरती ,सूखा आसमाँ भी लगे थे ……… हमें तब आग ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
कि हर सूखा पत्ता भीगा हुआ सा ……… लगता था जैसा ,
सूखी धरती ,सूखा आसमाँ भी लगे थे ……… हमें तब आग ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
बहुत सँभाला अपने दिल को ……… मगर वो रो ही दिया ,
अपनी सूखी हुई तक़दीर को ……… ज़ुबाँ से खोल दिया ,
फिर अंजाम क्या हुआ ……… ये नहीं अब याद ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
अपनी सूखी हुई तक़दीर को ……… ज़ुबाँ से खोल दिया ,
फिर अंजाम क्या हुआ ……… ये नहीं अब याद ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
ज़िंदगी कटती रही रोज़ ……… तेरे ख्यालों में ,
फिर ना वापस कभी लाएँगे ……… तुझे अपनी यादों में ,
उस सूखे लम्हे ने जब पूछ ली ……… कल हमसे हमारी वो जात ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
फिर ना वापस कभी लाएँगे ……… तुझे अपनी यादों में ,
उस सूखे लम्हे ने जब पूछ ली ……… कल हमसे हमारी वो जात ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
खुद को लाख बदलने की उम्मीद से ………. ये दिल तब जले ,
जब ख्यालों में तेरा चेहरा हो ………. पर उम्मीद ना बँधे ,
तब दिल ही दिल में हम कोस रहे थे ……… अपना वो साथ ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
जब ख्यालों में तेरा चेहरा हो ………. पर उम्मीद ना बँधे ,
तब दिल ही दिल में हम कोस रहे थे ……… अपना वो साथ ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
हार कर अपने करम की बाज़ी को ……… जब हम यूँ चले ,
उनकी नज़रों में पहले से भी ज्यादा ………अब और गिरे ,
कैसे कह पाएँगे उनसे भला ……… वो राज़ की बात ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
उनकी नज़रों में पहले से भी ज्यादा ………अब और गिरे ,
कैसे कह पाएँगे उनसे भला ……… वो राज़ की बात ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
वही वक़्त ,वही मोड़ लौट आया था ……देखो कल फिर से ,
जहाँ पर आस थी कुछ पाने की ………कभी दिल से ,
गम था तो बस इतना कि क्यूँ पाया था ………. कभी तेरा वो साथ ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
जहाँ पर आस थी कुछ पाने की ………कभी दिल से ,
गम था तो बस इतना कि क्यूँ पाया था ………. कभी तेरा वो साथ ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।
अच्छा था वो सफ़र ज़िंदगी का ……… जिसकी कभी कुछ भनक ही ना थी ,
अब जब जान लिया सब कुछ तो बस ………तेरे साथ की एक कमी सी थी ,
उसी कमी को दिल में रखकर ……… गिरे थे हम कल रात ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।।
अब जब जान लिया सब कुछ तो बस ………तेरे साथ की एक कमी सी थी ,
उसी कमी को दिल में रखकर ……… गिरे थे हम कल रात ,
एक सूखे पत्ते की तरह कड़-कड़ ………बोले थे हम ……कल रात ।।
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