This Hindi poem highlights the Love of two lovers in which the Lover tried to excite Her beloved but went away in the middle session due to some odd time.
गहरे ज़ख्म देकर …..मत चले जाया करो तुम जनाब ,
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
आज बहुत दर्द से भीगे हुए हैं …….ये ना जाने क्यूँ ?
गर दर्द इनका लिखने जो हम लगें ……तो कम पड़ जाएगी हर किताब ।
गर दर्द इनका लिखने जो हम लगें ……तो कम पड़ जाएगी हर किताब ।
लाल सा रंग इनका …..बह रहा है देखो …….आज बेहिसाब ?
जब मिलोगे तब देना पड़ेगा …..तुमको तब इसका भी जवाब ।
जब मिलोगे तब देना पड़ेगा …..तुमको तब इसका भी जवाब ।
गहरे ज़ख्म देकर …..मत चले जाया करो तुम जनाब ,
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
जब भी हम इनको दबाने लगते ……तो ये एक टीस बन मचलें ,
अच्छा होता जो तुमने डाली होती …….इन पर भी थोड़ी शराब ।
अच्छा होता जो तुमने डाली होती …….इन पर भी थोड़ी शराब ।
दबे-दबे से ये ज़ख्म ……..एक दिन नासूर बन फूटेंगे ,
तब इनके दर्द को बयाँ करने के लिए …….देखना मिलेगा ना तुम्हे भी कोई खिताब ।
तब इनके दर्द को बयाँ करने के लिए …….देखना मिलेगा ना तुम्हे भी कोई खिताब ।
रात भर ज़ख्मों को अपने ….हम मरहम लगाते रह गए ,
मगर उन्हें दबना ना आया …….और सुलगती रही एक धीमी सी आग ।
मगर उन्हें दबना ना आया …….और सुलगती रही एक धीमी सी आग ।
गहरे ज़ख्म देकर …..मत चले जाया करो तुम जनाब ,
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
ज़ख्मों को मचलने की ……..ऐसी भी क्या कोई सज़ा होगी ?
ये सोच जब भी हम टूटने लगे …..तब मिलने लगा एक नया जवाब ।
ये सोच जब भी हम टूटने लगे …..तब मिलने लगा एक नया जवाब ।
अपने ज़ख्मों को जब भी ……कुरेदने की कोशिश की हमने अपने आप ,
ज़माने भर को खबर लग गई ……कि अब उड़ने लगा हमारा नक़ाब ।
ज़माने भर को खबर लग गई ……कि अब उड़ने लगा हमारा नक़ाब ।
आपने जो समझा होता …….हमारे ज़ख्मों की हदों का हिसाब ,
तो गुस्ताखी ना करते हम ऐसी ……उन्हें तड़पाने की खिलाकर ये “गुलाब” ।
तो गुस्ताखी ना करते हम ऐसी ……उन्हें तड़पाने की खिलाकर ये “गुलाब” ।
गहरे ज़ख्म देकर …..मत चले जाया करो तुम जनाब ,
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
कभी ये ज़ख्म खुलते हैं …….कभी खुलता है देखो इनका शबाब ।
For You Only-
तुम जिसे मोहब्बत कहते हो …….हमने उसे ज़ख्मों का नाम दिया ,
तुम चले गए छोड़ जिसे अधूरा …..उसकी गहराई ने हमारी अंतरात्मा को भी सच में बर्बाद किया ॥
तुम चले गए छोड़ जिसे अधूरा …..उसकी गहराई ने हमारी अंतरात्मा को भी सच में बर्बाद किया ॥
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