This Hindi poem highlights the mental state of beloved in which she was asking with his Lover about the reason of being so attractive for Her.
तेरे अंदर ज़माने भर की ……. एक कशिश सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
हर बार ये दिल तेरे आगे एक हूक सी भरे ,
कुछ ना कह कर भी सब कुछ तुझे समर्पित करे ,
तेरे अंदर सवालों की ……. एक नमी सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
कुछ ना कह कर भी सब कुछ तुझे समर्पित करे ,
तेरे अंदर सवालों की ……. एक नमी सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
तूने ये इश्क़ सिखाया मुझे तो क्या बुरा किया ,
पर इस इश्क़ को निभाने की सूरत क्यूँ इतनी बुरी है ?
तेरे अंदर खुमारी की ……. एक चमक सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
पर इस इश्क़ को निभाने की सूरत क्यूँ इतनी बुरी है ?
तेरे अंदर खुमारी की ……. एक चमक सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
हर बार इस दिल को तेरे साथ हम भी सम्भाला करते हैं ,
और अपने दिल में हज़ारों राज़ के घरों को दफनाया करते हैं ,
तेरे अंदर समाने की ……. एक ललक सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
और अपने दिल में हज़ारों राज़ के घरों को दफनाया करते हैं ,
तेरे अंदर समाने की ……. एक ललक सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
तूने बना कर एक किताब हमें बोलो भला पढ़ा क्यूँ ?
हम बनके उस किताब के पन्ने भला जले क्यूँ?
तेरे अंदर हर हर्फ़ को समझने की ……. एक तलब सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
हम बनके उस किताब के पन्ने भला जले क्यूँ?
तेरे अंदर हर हर्फ़ को समझने की ……. एक तलब सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
मैं तेरे साथ ना जाने कितनी बार अपने आँसुओं को गिना करती हूँ ,
ये कैसी मज़बूरी है बता जिसके साथ जिया करती हूँ ,
तेरे अंदर मुझे हँसाने की ……. एक दमक सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
ये कैसी मज़बूरी है बता जिसके साथ जिया करती हूँ ,
तेरे अंदर मुझे हँसाने की ……. एक दमक सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
तुमने जब भी मुझे कहा कि बताऊँ मैं तुझे अपने दिल का फ़साना ,
मैं हर शब्द को लपेट कर बनाती रही रोज़ एक बहाना ,
तेरे अंदर हर बहाने को परखने की ……. एक वजह सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
मैं हर शब्द को लपेट कर बनाती रही रोज़ एक बहाना ,
तेरे अंदर हर बहाने को परखने की ……. एक वजह सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
मैं तेरे इश्क़ की खादिम बन बैठी देख किसी रोज़ यूँही ,
तूने फिर भी न समेटा बढ़कर मेरे अरमानो को निर्मोही ,
तेरे अंदर मेरे अधूरेपन की ……. एक दवा सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
तूने फिर भी न समेटा बढ़कर मेरे अरमानो को निर्मोही ,
तेरे अंदर मेरे अधूरेपन की ……. एक दवा सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
तेरे अंदर ज़माने भर की ……. एक कशिश सी क्यूँ है ?
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
ना जाने क्या है तेरे अंदर ……. जो लगता मुझे हसीं है ।
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