A Romantic Bath: In this Hindi poem the Poetess desire to have a bath with her lover and so she entered the same for this. As she has got complete love and satisfaction after the bath so she wishes to have such bath daily with Him.
आज तेरे संग चली मैं फिर नहाने ,
तू मुझे छेड़ेगा शायद इस बहाने ,
शब्दों से जो कह ना पायी तुमको दिलबर ,
नज़रों से अब समझो तुम इस संग के माने ।
तू मुझे छेड़ेगा शायद इस बहाने ,
शब्दों से जो कह ना पायी तुमको दिलबर ,
नज़रों से अब समझो तुम इस संग के माने ।
गर्म और भीगे हुए से मेरे बदन पर ,
पड़ती हैं जब पानी कि ये ठंडी बूँदें ,
मस्त से हो जाओ तब तुम संग मेरे ,
आओ मिल कर चलें संग ……..फिर कोई गीत गाने ।
पड़ती हैं जब पानी कि ये ठंडी बूँदें ,
मस्त से हो जाओ तब तुम संग मेरे ,
आओ मिल कर चलें संग ……..फिर कोई गीत गाने ।
सब कहते हैं कि संग होता ये अजब सा ,
जिसमे मिलन होता है दो मैले बदन का ,
दोनों कोशिश करते हैं एक दूजे के बहाने ,
निर्मल बना दें दूसरे को चल कर संग नहाने ।
जिसमे मिलन होता है दो मैले बदन का ,
दोनों कोशिश करते हैं एक दूजे के बहाने ,
निर्मल बना दें दूसरे को चल कर संग नहाने ।
अपने हाथों से तुमने हमको घसीटा ,
पार कर दो अब जो है कोई सयंम की रेखा ,
संग मेरे आयी हो जब तुम नहाने ,
फिर कैसे दूं मैं बोलो भला ……तुमको कहीं जाने ।
पार कर दो अब जो है कोई सयंम की रेखा ,
संग मेरे आयी हो जब तुम नहाने ,
फिर कैसे दूं मैं बोलो भला ……तुमको कहीं जाने ।
तुम समझ जायोगे मेरे मन का तर्पण ,
इसलिए आयी यहाँ करने खुद को समर्पण ,
ख्वाइशों को लगाकर अपनी खुद निशाने ,
जा ना पाऊँगी अब मैं करके बहाने ।
इसलिए आयी यहाँ करने खुद को समर्पण ,
ख्वाइशों को लगाकर अपनी खुद निशाने ,
जा ना पाऊँगी अब मैं करके बहाने ।
रंग बदला-बदला सा लगे आज इस फ़िज़ा का ,
साबुन फिसल रहा है अपनी उँगलियों का ,
हाथों में जकड़े तुझे निकले नए तराने ,
इश्क़ अधूरा है बिना प्रियतम के संग नहाने ।
साबुन फिसल रहा है अपनी उँगलियों का ,
हाथों में जकड़े तुझे निकले नए तराने ,
इश्क़ अधूरा है बिना प्रियतम के संग नहाने ।
गीले-गीले से गेसू जब तन पर बिखरते ,
तुम उन्हें पकड़ और भी मदहोश करते ,
खुद को मेरे और भी करीब लाने ,
तुम भी तो मचल रहे थे कहीं …….मेरे संग नहाने ।
तुम उन्हें पकड़ और भी मदहोश करते ,
खुद को मेरे और भी करीब लाने ,
तुम भी तो मचल रहे थे कहीं …….मेरे संग नहाने ।
शोर ना था आज कोई बाल्टी-डिब्बे का ,
ख़याल ना रहा दोनों को अब समय का ,
कैसे कहें कि दो हमें अब तुम कहीं जाने ,
आज मैं खुद ही आयी थी …….तेरे संग नहाने ।
ख़याल ना रहा दोनों को अब समय का ,
कैसे कहें कि दो हमें अब तुम कहीं जाने ,
आज मैं खुद ही आयी थी …….तेरे संग नहाने ।
मल रहे थे मेरी मलिन तुम आत्मा को ,
धो रहे थे हम तुम्हारे ……मन में बसी हर कामना को ,
बढ़ रही थी लालसाएँ एक -दूसरे के तन को पाने ,
आज था दिन मदभरा ……..जिसमे सजे थे कई सपने सुहाने ।
धो रहे थे हम तुम्हारे ……मन में बसी हर कामना को ,
बढ़ रही थी लालसाएँ एक -दूसरे के तन को पाने ,
आज था दिन मदभरा ……..जिसमे सजे थे कई सपने सुहाने ।
हो गया ठंडा अब हर अंग-अंग अपने बदन का ,
मिल गया संतोष जो अधूरा था …….ना जाने कितने जनम का ,
यूँही नहीं कहते ज्ञानी जन कि पाओगे तुम सपने सयाने ,
जब साथ एक-दूसरे के कोशिश करोगे तुम नहाने ।
मिल गया संतोष जो अधूरा था …….ना जाने कितने जनम का ,
यूँही नहीं कहते ज्ञानी जन कि पाओगे तुम सपने सयाने ,
जब साथ एक-दूसरे के कोशिश करोगे तुम नहाने ।
आज तेरे संग चली थी लेकर मैं जो सपने सजाने ,
पूरे हुए वो मेरे बनकर तुम्हारे संग कई नए बहाने ,
साथ तेरा क्षण भर का बना गया कितने अफ़साने ,
कि जी चाहता है अब ये मेरा ……रोज़ जाऊँ तुम संग नहाने ॥
पूरे हुए वो मेरे बनकर तुम्हारे संग कई नए बहाने ,
साथ तेरा क्षण भर का बना गया कितने अफ़साने ,
कि जी चाहता है अब ये मेरा ……रोज़ जाऊँ तुम संग नहाने ॥
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