शहरों की ओर भागते ……ये “देहाती” मेहमान ,
कुछ वर्षों में ही भर देते हैं …..यहाँ की शमशान ।
जिस रोज़ी -रोटी को पाने की खातिर ,उन्होंने किया था पलायन ……
उसी की आग में झुलस गए ,न जाने कितने निर्दोष तन ?
ये यू .पी ,बिहार ,गढ़वाल का रेला ……
बसता ही चला गया ,हर कोने में अकेला ।
शहरी चमक ने उसे …..कर दिया इतना पागल ,
कि भूखे पेट भी सोना मंजूर ,ओढ़े आकाश और बादल ।
काम करना कोई सीखा नहीं ,बन बैठे अब Driver….
‘Traffic Rules” का पता नहीं ,सरपट दौड़ाते Four Wheeler .
न खुद की जान प्यारी,न औरों के घर का ख़याल ….
रोज़ बिखेरते हैं सड़क पर ,खून से भरी होली का गुलाल ।
जब नौकरी से हाथ धो बैठे ,तो करने लगे कुकर्म …..
लूट-पाट से पेट अपना भर ,उड़ाया मासूमों को कफ़न ।
जाने की “शहर ” से सोचेंगे ,अब कभी भी नहीं …..
शहर तो शहर है ……..ऐसी सोच उनके मन में घर करी ।
खुद सलाखों के हैं पीछे ,परिवार उनका मर रहा …..
धीरे -धीरे देखो फिर से ,उनकी अर्थियों का नंबर बढ़ रहा ।
क्या मिला …. सोचो ज़रा ,यूँ शहरों में अपनी संख्या बढ़ाकर ?
गर सोचा होता “महंगाई” का पहले, तो कभी न आते यूँ गाँव छोड़कर ।
गाँवों में भी बसते हैं ,सच्चे दिल के इंसान ….
फिर क्यों चले आते हैं हम शहरों में ….. बनके “बिन बुलाये” मेहमान ?
राज्यों की सरकार यदि चाहे ,तो इस पलायनता को रोक सकती है ……
शहर में हो रही गुंडागर्दी और भीड़ पर ,Control कर सकती है ।
गाँवों के निवासियों को “पलायनता” से पहले, यदि सचेत किया जाएगा …..
तो वो अपने साथ …. न जाने कितने परिवारों को,मरने से बचा पायेगा।
A Message To Them-
Migration from Towns to cities is not a profitable one for An illiterate Person,
As in Towns He is alone to die but in Cities he will responsible for Others too to Die.
No comments:
Post a Comment