अश्लील मंसूबों को साथ लिए ,
मेरा जीजा शहर से आया था ,
होली के बहाने मेरे अंगों को ,
अपने अंगों में समोने आया था ।
अनेक रंग अश्लीलता भरे ,
उसकी आँखों में थे तैर रहे ,
जिन्हें त्यौहार के बहाने से ,
वो रंगीन करने आया था ।
आवभगत उसकी करने की खातिर ,
हमने उसे दामाद से देवता बनाया था ,
छत्तीसों पकवानों का भोज बना ,
मैंने अपने हाथों से उसके आगे सजाया था ।
ना जाने क्यों उसके मंसूबों को ,
मैंने भोज के दौरान भाँपा था ,
जब भोजन की थाली परोसते हुए ,
उसने मेरे यौवन में झाँका था ।
बहुत अचंभित थी मैं ये सोच ,
उसकी ऐसी मानसिकता को खोज,
पर चारा अब बाकी ना था कोई ,
यही सोच मन मारा था ।
अगले दिन सुबह हुई रंगीन ,
सब सखियाँ होली खेलें रिम-झिम ,
त्यौहार की इस पावन बेला पर ,
हर्षित हो रहा था मन …..ऋतु को कर रंगीन ।
इतने में जीजा भी आया,
हाथ में रंग की डिबिया दबाए ,
रंग लगाने के बहाने से देखो ,
मुझे खींच बिस्तर पर ले जाए ।
मगर इस बार मेरी बारी थी ,
उसकी अश्लील हरकत की मैंने ….की तयारी थी ,
कमरे में लगा कर कैमरे को मैंने ,
उसकी तस्वीर उतारी थी ।
अब शाम उसके वापस जाने की बारी आई ,
वो सोच रहा उसने जीत लिया मुझे …..अपनी करके चतुराई ,
दोनों हाथों में लड्डू लेकर ,
वो करने लगा मुझसे विदाई ।
मैंने उसको सबके सामने बिठाया ,
कैमरे का विडियो खुले आम चलाया ,
फिर बोली मैं उससे ,”ओ शहरी जीजा “,
त्यौहार का असली मज़ा तो देख अब आया ।
रिश्तों को बदनाम यूँ करके ,
त्यौहार मनाने का ढोंग रचके ,
अपनी गन्दी मानसिकता को दिखाने ,
क्यूँ आये तुम रावण बनके?
अब इस विडियो को साथ ले जायो ,
जीवर भर इसे देख पछतायो ,
कि एक ही साली थी मेरी कभी ,
जिसने होली पर मुझे नग्न करायो ।
अगले साल ससुराल जरूर आना ,
पर मेरा दिया तोहफा भूल न जाना ,
कि रिश्तों को मर्यादा में रखकर ही ,
त्यौहार का भरपूर लुफ्त उठाना ।
सुनकर मेरी बातें वो शर्म से ,
खड़ा रहा अपना सर झुकाए ,
जिन आँखों में थे सुबह रंग अश्लील ,
वो अब बेचारी बेरंग नज़र आएँ ।
जाते-जाते बस वो इतना बोला ,
कि अब लौट कर ना आयूँगा फिर से दुबारा ,
होली के इस त्यौहार को मैंने समझा अब तक ,
वासनायों के रंगों का ही खेल सारा ।।
A Message To All-
Maintain Decorum On This Festival Of Colours…So That Relations Becomes Healthy and Prosperous !!!
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