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Sunday, March 8, 2015

Free From Burden

In this Hindi poem, poet is requesting the wine bearer to give wine as she want to see her lover’s face in the last moments of her life

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Hindi Poem – Free From Burden

“साकिया” मुझे “शराब” ला ……मैं भी ज़रा सा इसको चख लूँ ,
टूटती इन साँसों में ….अपने “यार” की सूरत तक लूँ ।

उम्र भर “वो” मिल न सका ….अब तो गले लगाने दे ,
हल्के-हल्के “नशे” में मुझको ….उसके करीब जाने दे ।

“साकिया” मुझे “शराब” ला ……मैं भी ज़रा सा इसको चख लूँ ,
टूटती इन साँसों में ….अपने “यार” के दिल को भर दूँ ।

वो अनजान सा “सौदागर” ….बन बैठा मेरा अफ़साना ,
दुनिया वाले खोज रहे हैं …….मेरे किस्से का “दीवाना” ।

“साकिया” मुझे “शराब” ला ……मैं भी ज़रा सा इसको चख लूँ ,
टूटती इन साँसों में ….कुछ पल सुकून के …..उसके नाम कर दूँ ।

दिल में जो एक “बोझ” बसा है ….उसकी चाहत के भरम का ,
आज बहाने दे तू मुझको …..गहना मेरी लाज शरम का ।

“साकिया” मुझे “शराब” ला ……मैं भी ज़रा सा इसको चख लूँ ,
हौले-हौले से अपने जाम में ….उसके नाम का “अमृत” भर दूँ ।

बहुत सताया उसने मुझको ….पल-पल गम में छोड़ गया ,
अब देखें आ हम भी कैसे ……उसके “दिल” को कुछ क्यों नहीं हुआ ?

“साकिया” मुझे “शराब” ला ……मैं भी ज़रा सा इसको चख लूँ ,
उसकी धड़कनों में बसकर …..उसके ‘दिल” को अपना कर लूँ ।

अंतिम क्षण यूँ बीत रहा है ….उसकी खबर को आने दे ,
टूटती हुई इन साँसों में ……उसकी “हिचकी” की याद समाने दे ।

“साकिया” मुझे “शराब” ला ……मैं भी ज़रा सा इसको चख लूँ ,
गिरते पड़ते इश्क में उसके ……”साँसों” की माला को जप लूँ ।

कहते हैं जो मरते हैं …..अधूरी ख्वाइश को साथ लिए ,
एक “बोझ” उनके सीने पर …..रह जाता है नया भार लिए ।

“साकिया” मुझे “शराब” ला ……मैं भी ज़रा सा इसको चख लूँ ,
“नशे” को बेकाबू करके …..हर “बोझ” से खुद को मुक्ति दे दूँ ।

बिना “नशे” के होगा नहीं ……उसका कभी “दीदार” मुझे ,
“साकिया” तू एहसान कर दे …..”शराब” पिला कर इस बार मुझे ॥

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