“वो” कह रहा था ……”जाओ” ……..नहीं तो बह जायोगे ,
मेरे साथ मचलती लहरों में ……….यूँही कहीं खो जायोगे ।
तुम अभी नादान हो ………नादानी न करो ,
मेरी दिल~ए ~बेताबी से यूँ ………बेईमानी न करो ।
मेरी मजबूरी का तुम ……यूँ इम्तिहान न लो ,
इस चढ़ती हुई जवानी को ……कोई नाम न दो ।
मैं रोक नहीं पायूँगा ……तुम्हारे लिए उठे जो बहते ज़ज्बात ,
मैं यूँ ही खो जायूँगा ……तुम्हारे साथ दिन और रात ।
“वो” कह रहा था ……”जाओ” ……..नहीं तो बह जायोगे ,
मेरे साथ मचलती लहरों में ……….यूँही कहीं खो जायोगे ।
“वो” कशमकश में इतना ……मजबूर हो चला था ,
एक तरफ हमारी ……..और दूसरी तरफ अपनी ………हर तस्वीर खो रहा था ।
ये उम्र का था ऐसा सैलाब ………जिसमे हर कोई बह जाएगा ,
मैं भी एक इंसान हूँ ……जो तेरे साथ बंध जाएगा ।
तुम जाओ इन रातों से दूर कहीं ……..मत बदनाम मुझको करो ,
मैं इस समय एक आग का शोला हूँ ………..मत हवा इसमें भरो ।
“वो” कह रहा था ……”जाओ” ……..नहीं तो बह जायोगे ,
मेरे साथ मचलती लहरों में ……….यूँही कहीं खो जायोगे ।
मैं भी तड़प रही थी इधर …….उसकी कही हर जुबानी से ,
मैं भी संभल रही थी……उसकी इस परेशानी से ।
कसूर न उसका था………न ही मेरा था उसके लिए पैगाम ,
ये अकेलेपन का था खामियाज़ा …….जो कर रहा था हम दोनों को परेशान ।
ना “वो ” मुझसे मिलता ………ना मैं उसके संग बहती ,
जो इश्क की गर्मी थी ……..वो शायद तब हमारे दरमियान ही रहती ।
“वो” कह रहा था ……”जाओ” ……..नहीं तो बह जायोगे ,
मेरे साथ मचलती लहरों में ……….यूँही कहीं खो जायोगे ।
एक बार को हम दोनों …….बस कर देते सच में नादानी ,
वो एक ऐसी थी कहानी …….जिसमे शब्दों की न थी जुबानी ।
“वो” बार-बार कह रहा था ……..”जाओ ……दूर मुझसे !!” ,
क्योंकि “वो” हर बार सह रहा था ……..लहरों की कशिश मुझसे ।
“वो” कह रहा था ……..मत समझो इश्क में अपनी ……कोई जीत या हार ,
फिर क्यों जिद पर अड़ी थी “मैं”……पाने को उसका प्यार ।
“वो” कह रहा था ……”जाओ” ……..नहीं तो बह जायोगे ,
मेरे साथ मचलती लहरों में ……….यूँही कहीं खो जायोगे ।
“उसकी” मजबूरी पर अब आने लगा था ……मुझे और भी ज्यादा प्यार ,
जो अपनी बेताबी में भी …..चाहता था मेरे हित में ही अपना संसार ।
यूँही बदनाम करता है अक्सर ……”लड़कों” को ये सारा संसार ,
ये सोच मैं चली गयी वहाँ से ……….क्योंकि उस वक़्त मेरा यार था दुनिया में ………सबसे ज्यादा समझदार ।।
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