वो चुराने लगा ......... मेरे लबों की लाली ,
मैं लाली बचाते-बचाते ... बदनाम हो गई |
वो चुराने लगा ...... मेरे जिस्म की खुशबू ,
मैं खुशबू संभालते-संभालते .... सरे ~ ए ~ आम हो गई |
वो पाना चाहता था ..... जिस भूख को मुझमे ,
मैं उस भूख की राह को पाकर ........ गुलिस्ताँ हो गई |
वो एक बार कहता तो सही ..... अपनी दिल ~ ए ~ आरज़ू को ,
मैं उस आरज़ू की शाख पर ..... फना हो गई |
गम ~ ए ~ मंज़र इतना ही सही ....... उसकी चाहत के आगे ,
कि "काश वो मिला होता पहले" , तो ये जिस्म और जान उसकी अदब में ...... कब की हवा बन गई ||
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