याद आ रही है फिर से .... अपनी दोस्ती की वो पहली मुलाक़ात ,
जब यूँही किसी रात में .... संग थे तुम मेरे साथ ,
अनजान लोगों के ...... नापाक इरादों से भरी हर बात ,
एक अच्छा सा साथ ....... जिसमे हर पल जान जाने का एहसास |
हर रेस में निकलती थी ..... तुम्हे हराने की एक ख्वाइश ,
मगर जीत कर अफ़सोस करती हुई ...... धडकनों की फरमाइश ,
मुश्किल ही होगा जहान में ..... तुमसा और कोई पाना ,
जिसे इतने करीब आने पर भी आता हो ..... एक पल में सब भुलाना |
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