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Tuesday, October 23, 2018

ग़ज़ल लिखते-लिखते

ग़ज़ल लिखते-लिखते  ......  हम खुद ग़ज़ल बन गए ,
मस्ती ही कुछ ऐसी थी  ..... तेरे हर तरन्नुम मेँ ,
शब्दों की जादूगरी  ...... जो सीखी है तुम्हारी बातों से ,
हर शब्द तुम्हारे होठों का  ...... मुझे फिर दीवाना कर गया || 

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