ग़ज़ल लिखते-लिखते ...... हम खुद ग़ज़ल बन गए ,
मस्ती ही कुछ ऐसी थी ..... तेरे हर तरन्नुम मेँ ,
शब्दों की जादूगरी ...... जो सीखी है तुम्हारी बातों से ,
हर शब्द तुम्हारे होठों का ...... मुझे फिर दीवाना कर गया ||
मस्ती ही कुछ ऐसी थी ..... तेरे हर तरन्नुम मेँ ,
शब्दों की जादूगरी ...... जो सीखी है तुम्हारी बातों से ,
हर शब्द तुम्हारे होठों का ...... मुझे फिर दीवाना कर गया ||
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