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Thursday, June 14, 2018

फिर क्यूँ बेवजह याद आते हो तुम ....... मुझे हर आधी रात को ???

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बहुत देर तक राह तकती रही  .......  मैं सिर्फ तेरे आने की ,
ख्वाइशें ढकती रही  ..... उन्हें तुम तक पहुंचाने की ,
इश्क़ नादानी में कभी-कभी  .... ऐसी खता भी करेगा ,
तेरे मक़बूल की खातिर रजा है  ... अब हर सज़ा पाने की | 

तूने पीर की मुरीद ना की  ....... इसका इल्म नहीं मुझको ,
तूने कफ्न को तवज्जो ना दी  ..... बेपरवाह रखा मुझको ,
शिक़वे और गिले अक्सर  ...... करते हैं नादान दिल ,
तेरी एक-एक अदा मिसाल है  ..... जीने को मेरे क़ातिल | 

लेंगे गर सात जनम  ....... तो तुमसे हर जनम मिलने आएँगे ,
इस अधूरे ख्वाब को  ....... एक नई मिसाल बनाकर जाएँगे ,
मिलते नहीं हैं ऐसे लोग  ..... यूँ किसी इत्तिफाक से ,
क्या पता हमारा मिलना  ....... सींचे लहू हर किताब से | 

अनजान लोगों का अनजान फ़साना ...... बड़ा बेदर्द होता है ,
ना कोई रंग , ना कोई संग  .... सिर्फ एक जल-तरंग होता है ,
बहुत पाक रखी है अब तक  .... मैंने दिल से ली गई हर साँस को ,
फिर क्यूँ बेवजह याद आते हो तुम  ....... मुझे हर आधी रात को ???

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