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Wednesday, June 13, 2018

वो शख्स

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वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया,
एक गुजरते हुए साल में नया साल बनकर आया ।

में तन्हाई में ढूँढा करती थी अक्सर जिस हाथ को ,
वो उस हाथ में मेरे लिए तकदीर लिखकर लाया।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया………

मैं हार कर ज़माने से लगी मायूसी को गले लगाने ,
वो उस मायूसी में मेरी जिंदगी को पढने आया ।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया……..

मैं बंद परिंदे की तरह एक साज़ गा रही थी ,
वो उस साज़ में मेरे लिए एक आवाज़ लेकर आया ।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया……….

मैं मूँद पलकें अपनी अँधेरे में जा रही थी ,
वो उन बंद पलकों पर सपने सजाने आया ।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया…………

मैं धडकनों को काबू करके साँसों से लड़ रही थी ,
वो उन धडकनों को सीने में फिर धडकाने आया ।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया………

मैं होठों से लेने में डरा करती थी जिन लफ्ज़ों को ,
वो उन लफ्ज़ों को अपने कानों से सुनने आया ।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया……..

मैं टूट कर अन्दर से ज़र्रा-ज़र्रा हो चुकी थी,
वो उस ज़र्रे को भी सुहागन बनाने आया ।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया……..

सब कहते हैं कि “खुदा” होता है यहीं पर ,
वो उस “खुदा” में मुझको मेरा अक्स दिखाने आया ।

वो शख्स मेरे लिए मेरी पहचान बनकर आया,
एक गुजरते हुए साल में नया साल बनकर आया ।

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