हौसले चट्टानों के हो जिनके ........ उनको टूटने का इल्म नहीं होता ,
टूट कर बिखरते हैं वो ....... जिनके हौसलों में दम नहीं होता ,
बात हौसले की करते हैं ...... वो महफिलों में आकर ,
महफ़िलें ही दगाबाज़ हों ......... तो कोई रंज नहीं होता ,
हौसले बुलंद करने की ...... जब भी आवाज़ आई है ,
नाकामियों से ठोकर तब ........ कामियाबों ने खाई है ।
No comments:
Post a Comment